Tuesday, July 3, 2012

|| सरहद के उस पार ||



पल में जश्न, पल में  ग़म 
आँखों में कहीं उम्मीद  के  मोती  
गुच्छों  में उलझे सोच के  धागे 
बीखरे हुए मोतियों से वक़्त से किये वायदे

कभी किसी लम्हे  में अश्रु  की यह धार यूँही बहती है 
सरहद  के  उस  पार  भी  क्या यही  कहानी चलती  है ।

पलकें बंद  करके सपनों  में  खो जाना 
खट्टी मीठी यादों से दिल को बहलाना 
मंद मंद मुस्कान के साथ आँखों  का नम हो जाना 
कल की याद में आज  को  भूल  जाना 

क्या अक्सर यह गलतियाँ कहीं और भी होती है 
सरहद  के  उस  पार  भी  क्या  यही  कहानी  चलती  है ।

दिन बदले , मौसम बदले और गुजरे बहुतेरे  बरस 
मनं मेरे क्यूँ तू आज भी ढूंढे वही अरज ,
उन गलियों  में अब यादों  के रेत बहते हैं 
जिनमे हम अरमानों  के  फूल  सजाते  थे 

क्या  सुमन की भीनी खुसबू और कहीं भी आती है ,
सरहद के उस पार भी क्या यही कहानी चलती है 

आज कुछ  भी  कहीं  नहीं  है, फिर भी साँसें चलती हैं 
दिल अलग, धड़कन जुदा फिर भी दुनिया जीने कहती है  ....

क्या  सरहद  के  उस  पार  भी  यही  कहानी  चलती  है ||

PS : Inspired by one of my fav movie - veer zara

The Broken Arrow!

Ana could not believe herself.17 years, 3 months and 2 days is what it had taken life to come full circle for her. Still vivid in her memoir...