आवारा हवा का झोंका हूँ ..
आ निकला हूँ पल दो पल के लिए
सागर की लहरों से टकराता....
चल निकला हूँ मैं साहिल के लिए
.
मंजिल में अपने कांटे सही
चुन डालूँगा सारे तेरी एक हँसी के लिए ..
चाहे लब पे आहट न हो कभी
मैं जलता रहूंगा तेरी तेरी रौशनी के लिए
.
एक दिन वह भी कभी आएगा
जब आंसू तेरे छलकेंगे एक आशिक के लिए
अपनी ज़िंदगी तो तनहा है ..
लम्हे बाकी हैं ज़न्नत के लिए ..
.
तुम देखो या न देखो पलट कर ..
मेरी आखें बिछी हैं तुम्हारी राहों के लिए ...
तुम चाहो तो अब भी आ जाओ ..
दिल मचला है फिर तुम्हे पाने के लिए
.
आवारा हवा का झोंका हूँ
आ निकला हूँ पल दो पल के लिए
Life's about a journey...a lane to an archaic destination.. predefined since the day we came here. It's not about giving or taking ... but experiencing the bliss in the immortal moments in this mortal world
Tuesday, April 8, 2008
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