हर लहर कुछ वादे क्यूँ छोड़ जाती है
हर आशा नयन आर्द्र क्यूँ कर जाती है
अन्गुलों में सिमटकर ,इतने करीब आकर
फिर वापस सिर्फ रेत क्यूँ छोड़ जाती है
शायद यही है नियति ,यही है सत्य
हर आने वाली सना जाने का रास्ता क्यूँ तय कर जाती है
जिंदगी लहरों की अजीब कहानी है
किसी की समझ से परे बरसों से अनजानी है
परन्तु ,हा हन्त! ,कल की अनिश्चितता से हम कभी ना हारे हैं
लहरों को चीर खुद रास्ता बनाना सीखा है
गिरे ,उठे ,संभाले ,फिर फिसले
पर हर बार लहरों को चीरते बढ़ चले
तो क्या हुआ अगर सिर्फ रेत ही हाथ लगी
सीपियों को चुने के विलक्षण तो मिले
सदियों को पाने की कोशिश में भले ही जल गए
पर जलते जलते उजाला तो कर गए
---------Author : Amrit
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